क़ुरान (अरबी : القرآن अल्-क़ुर्-आन्) इस्लाम की पवित्रतम पुस्तक है और इस्लाम की नींव है। इसे परमेश्वर (अल्लाह) ने देवदूत (फ़रिश्ते) जिब्राएल द्वारा हज़रत मुहम्मद को सुनाया था। मुसलमानों का मानना हैं कि क़ुरान ही अल्लाह की भेजी अन्तिम और सर्वोच्च पुस्तक है। क़ुरान का आवरण पृष्ठ पर एक शृंखला का भाग इस्लाम Istanbul, Hagia Sophia, Allah.jpg धारणाएं[दिखाएँ] प्रथाओं[दिखाएँ] ग्रंथ और विधान[दिखाएँ] इतिहास और नेता[दिखाएँ] मुख्य शाखाएं[दिखाएँ] संस्कृति और समाज[दिखाएँ] इन्हें भी देखें[दिखाएँ] इस्लाम की मान्यताओं के अनुसार क़ुरान का अल्लाह के दूत जिब्रील (जिसे ईसाइयत में गैब्रियल कहते हैं) द्वारा मुहम्मद साहब को सन् ६१० से सन् ६३२ में उनकी मृत्यु तक खुलासा किया गया था। हालाँकि आरंभ में इसका प्रसार मौखिक रूप से हुआ पर पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के बाद सन् ६३३ में इसे पहली बार लिखा गया था और सन् ६५३ में इसे मानकीकृत कर इसकी प्रतियां इस्लामी साम्राज्य में वितरित की गईं थी। मुसलमानों का मानना है कि ईश्वर द्वारा भेजे गए पवित्र संदेशों के सबसे आख़िरी संदेश कुरान में लिखे गए हैं। इन संदेशों का शुभारम्भ आदम से हुआ था। आदम इस्लामी (और यहूदी तथा ईसाई) मान्यताओं में सबसे पहला नबी (पैगम्बर या पयम्बर) था और इसकी तुलना हिन्दू धर्म के मनु से एक सीमा तक की जा सकती है। जिस प्रकार से हिन्दू धर्म में मनु की संतानों को मानव कहा गया है वैसे ही इस्लाम में आदम की संतानों को आदम या आदमी कहा जाता है। आदम को ईसाईयत में एडम कहते हैं। एकेश्वरवाद, धार्मिक आदेश, स्वर्ग, नरक, धैर्य, धर्म परायणता (तक्वा) के विषय ऐसे हैं जो बारम्बार दोहराए गए। क़ुरआन ने अपने समय में एक सीधे साधे, नेक व्यापारी व्यक्तियों को, जो अपने परिवार में एक भरपूर जीवन गुज़ार रहा था, विश्व की दो महान शक्तियों (रोमन तथा ईरानी) के समक्ष खड़ा कर दिया। केवल यही नहीं उसने रेगिस्तान के अनपढ़ लोगों को ऐसा सभ्य बना दिया कि पूरे विश्व पर इस सभ्यता की छाप से सैकड़ों वर्षों बाद भी इसके चिह्न मिलते हैं। क़ुरआन ने युध्द, शांति, राज्य संचालन इबादत, परिवार के वे आदर्श प्रस्तुत किए जिसका मानव समाज में आज प्रभाव है। मुसलमानों के अनुसार कुरआन में दिए गए ज्ञान से ये साबित होता है कि मुहम्मद साहब एक नबी थे। क़ुरान शब्द का प्रथम उल्लेख स्वयं कुरान में ही मिलता है, जहाँ इसका अर्थ है - उसने पढ़ा, या उसने उच्चारा। यह शब्द इसके सीरियाई समानांतर कुरियना का अर्थ लेता है जिसका अर्थ होता है ग्रंथों को पढ़ना। हालाँकि पाश्चात्य जानकार इसको सीरियाई शब्द से जोड़ते हैं, अधिकांश मुसलमानों का मानना है कि इसका मूल क़ुरा शब्द ही है। पर चाहे जो हो मुहम्मद साहब के जन्मदिन के समय ही यह एक अरबी शब्द बन गया था। स्वयं कुरान में इस शब्द का कोई ७० बार उल्लेख हुआ है। इसके अतिरिक्त भी कुरान के कई नाम हैं। इसे अल फ़ुरक़ान (कसौटी), अल हिक्मः (बुद्धिमता), धिक्र (याद) और मशहफ़ (लिखा हुआ) जैसे नामों से भी संबोधित किया गया है।
quinta-feira, 28 de agosto de 2014
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